कर्ण कायस्थ की पंजी व्यवस्था
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की अस्थि से बनी थी कायस्थ की काया। ब्रह्मा ने यह चित्र गुप्त तरीके से बनाया था, इसी कारण इस कायस्थ का नाम चित्रगुप्त रखा गया। पद्म पुराण के अनुसार कायस्थ कुल के ईष्ट देव श्री चित्रगुप्त जी के दो विवाह हुए। इनकी प्रथम पत्नी सूर्यदक्षिणा (जिन्हें नंदिनी भी कहते हैं) सूर्य-पुत्र श्राद्धदेव की कन्या थी, इनसे 4 पुत्र हुए-भानू, विभानू, विश्वभानू और वीर्यभानू। इनकी द्वितीय पत्नी ऐरावती (जिसे शोभावती भी कहते हैं) धर्मशर्मा नामक ब्राह्मण की कन्या थी, इनसे 8 पुत्र हुए चारु, चितचारु, मतिभान, सुचारु, चारुण, हिमवान, चित्र एवं अतिन्द्रिय कहलाए। इसका उल्लेख अहिल्या, कामधेनु, धर्मशास्त्र एवं पुराणों में भी किया गया है। चित्रगुप्त जी के बारह पुत्रों का विवाह नागराज वासुकी की बारह कन्याओं से सम्पन्न हुआ। इसी कारण कायस्थों की ननिहाल नागवंश मानी जाती है और नागपंचमी के दिन नाग पूजा की जाती है। इन बारह पुत्रों के दंश के अनुसार कायस्थ कुल में 12 शाखाएं हैं जो - श्रीवास्तव, सूर्यध्वज, वाल्मीक, अष्ठाना, माथुर, गौड़, भटनागर, सक्सेना, अम्बष्ठ, निगम, कर्ण, कुलश्रेष्ठ नामों से चलती हैं।
चित्रगुप्त के सातवें पुत्र चित्रचरण थे जिनका राशि नाम दामोदर था एवं उनका विवाह देवी कोकलसुता से हुआ। ये देवी लक्ष्मी की आराधना करते थे और वैष्णव थे। चित्रगुप्त जी ने चित्रचरण को कर्ण क्षेत्र (वर्तमाआन कर्नाटक) में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था। इनके वंशज कालांतर में उत्तरी राज्यों में प्रवासित हुए और वर्तमान में नेपाल, उड़ीसा एवं बिहार में पाए जाते हैं। ये बिहार में दो भागों में विभाजित है: गयावाल कर्ण – गया में बसे एवं मैथिल कर्ण जो मिथिला में जाकर बसे। इनमें दास, दत्त, देव, कण्ठ, निधि,मल्लिक, लाभ, चौधरी, रंग आदि पदवी प्रचलित हैं। मैथिल कर्ण कायस्थों की एक विशेषता उनकी पंजी पद्धति है, जो वंशावली अंकन की एक प्रणाली है। कर्ण 360 अल में विभाजित हैं। इस विशाल संख्या का कारण वह कर्ण परिवार हैं जिन्होंने कई चरणों में दक्षिण भारत से उत्तर की ओर प्रवास किया। यह ध्यानयोग्य है कि इस समुदाय का महाभारत के कर्ण से कोई सम्बन्ध नहीं है।कर्ण कायस्थों की विशेष पद्धिति पंजी व्यवस्था के बारे में पन्नजीकार हेमंत लाल दास (लबानी, मधुबनी) मैथिली में लिखी जयदेव मिश्र की मैथिली गीतगोविन्द का सन्दर्भ देकर बताते हैं मिथिला के सबसे पहले राजा मिथि थे।
 |
Maithli Geetgovind |
फिर कर्नाट वंश के राजा नान्य देश के राजा नान्यदेव के शासनवर्ष में मिथिला का सम्बंध कर्नाटक जैसे राज्यों के साथ भी स्थापित हुआ। कर्नाटक के राजा ने अपने मंत्री श्रीधर दास को ग्यारवीं शताब्दी में मिथिला राज्य में भेजा। श्रीधर दास मिथिला में कर्ण कायस्थ के बिजपुरुष के रूप में स्थापित हुए। हेमंत लाल दास आगे बताते हैं श्रीधर दास अपने साथ 13 सगे संबंधियों के साथ मिथिला में आकर बसे। सन 1709 में कर्ण कायस्थों की पंजी व्यस्था की शुरुआत हुई। पंजी व्यस्था में हर एक परिवार के घराना, मूल, गोत्र इत्यादि की जानकारियां समेट कर रखी गयी। पंजी व्यवस्था का सबसे पहला मूल पत्र तारक पत्ता अर्थात भोजकपत्र पर लिखा गया। इन सभी बातों का जिक्र मधुबनी के एक गाँव अंधराठाढ़ी के भगवती स्थान के मंदिर के ऊपर लगे शिलालेख में दर्ज है।पंजी व्यवस्था का जब निर्माण हुआ तो कर्ण कायस्थ के 14 मूल तैयार हुए। इसका मुख्य कारण था श्रीधर दास अपने साथ 13 सगे संबंधियों को कर्नाटक से यहाँ लेकर आए थे। श्रीधर दास खुद कर्नाटक के नवरमवाली से आये थे। मिथिला में इसे नरंगवाली नाम से उच्चारण किया गया। इसी तरह कर्नाटक के सोअनवारी को मिथिला में सोनेवार नाम से उच्चारण किया गया।
 |
Scan Copy of Geet Govind |
हेमंत लाल दास कहते हैं ब्राह्मणों के सबसे उच्च कुल सूत्रीय ब्रहामणों के यहाँ भी पंजी व्यवस्था विद्यामान थी। कालांतर में यह व्यवस्था उनके यहाँ विलुप्त होते गयी। पंजी व्यवस्था की जरूरत क्यों है? इसके जवाब में हेमंत लाल दास कहते हैं इसकी सबसे अधिक जरूरत विवाह - संस्कार के समय होती है। वर्तमान का उदाहरण देकर वह समझाते हैं कि आज के समय में दूसरे जातियों को अपना मूल तक भूल गए है। कहीं भी शादी संस्कार स्थापित किये जा रहे हैं। लेकिन कर्ण कायस्थों में पंजी व्यवस्था होने के कारण सभी चीज़े सामने आ जाती है। मान लीजिए कर्ण कायस्थ की किसी लड़की का शादी होने वाला है। उसके घर वाले रिश्ता लेकर किसी लड़के वाले के यहाँ जाएंगे। उस समय पंजी व्यवस्था की महत्वा बढ़ जाती है। पंजी व्यवस्था को देख कर मूल बताया जाता है। अगर लड़का और लड़की एक मूल के हुए तो वह शादी कभी नहीं होनी चाहिए। इस बात की पुष्टि विज्ञान भी करती है। उसके बाद लड़का-लड़की के सात पीढ़ियों को देखा जाता है। अगर सातों पीढ़ी में से किसी भी जगह सामानता पायी जाती है तो भी शादी नहीं हो सकती है। सात पीढ़ी में पिता एवं पितामह का मूल, लड़का - लड़की दोनों के मात्रिक(नानी गाँव), माँ मात्रिक, माता महिमात्रिक। नानी के मात्रिक, पितरमात्रिक, दादा के मात्रिक, दादी के मात्रिक। इन सब चीज़ों को मिलाया जाता है। कहीं भी सामानता होगी तो इसको आधिकार ठहरना कहा जाता है। शादी के वक़्त बायो-डाटा से अधिक महत्वपूर्ण यह सारी जानकारी होती है। जिसे एक कागज पर पन्नजीकार के द्वारा लिखवाया जाता है, जिसे परिचय-पत्र कहा जाता है। शादी से पहले सिध्यान्त होता है। जिसमें वर पक्ष और वधु पक्ष समाज के सामने लोटा उठा कर प्रमाणित करते है कि अब उन दोनों परिवारों के बीच संबंध स्थापित हो गया है। इसकी लिखित जानकारी दोनों पक्षों को पन्नजीकार के तरफ से दी जाती है। इसे मैथली में कट कहा जाता है। अगर इसके बाद दोनों पक्षों में किसी कारणवश कोई मनमुटाव होता है तो उस कट के आधार पर कोर्ट में अर्जी दी जा सकती है। सिध्यान्त कि समय दोनों पक्षों को अष्ठजन पत्री दी जाती है। जिसमें दोनों कुल की जानकारी वृस्तृत रूप में मौजूद रहती है।पंजी व्यवस्था की देखरेख के बारे में हेमंत लाल दास बताते हैं दरभंगा के राजा कामेश्वर सिंह झा ने अपने शासनकाल में पंजी व्यवस्था को कैथी लिपि में संग्रहित करवा के अपने संग्रालय में रखवा दिया। इसके साथ ही दो कायस्थ परिवारों को इसकी जिम्मेदारी दी गयी इस व्यवस्था को सुचारू ढंग से चलाने के लिए। वह दो परिवार है सिमरा गाँव के संजू परिवार और हैदरपुर के श्याम सुंदर के परिवार को। आज इस व्यवस्था को जानने वाले अधिक लोग है। फिर भी कर्ण कायस्थों के आम जनमानस को इसकी जानकारी नहीं होती है। इसलिए वह सब पन्नजीकार के पास आते हैं। पन्नजीकार का कार्य ही यही है वह पंजी व्यवस्था को सुचारू ढंग से चलाते रहे। हेमंत लाल दास वर्तमान स्थिति को देखकर थोड़े उदास भी दिखते हैं। वह बताते हैं आज ऐसे बहुत से पन्नजीकार है जो अधिक पैसे लेकर गलत परिचय-पत्र तैयार कर देते हैं। पांचवी पीढ़ी में अधिकार ठहरने के बावजूद भी शादी करवाया जा रहा है। वह बताते है अब तो एक मूल में भी लोग शादी की बात करते दिख रहे हैं। हेमंत लाल दास वर्तमान में कुरथौल पटना में रह कर वर्तमान पीढ़ी को पंजी व्यवस्था की जानकारियां देते रहते हैं। ताकि यह व्यवस्था कभी खत्म न हो सके।
 |
Hemant Lal Das
|
कने परिमार्जन उचित । जॅ पता देल जायत त' हम एकटा पोथी पठेबाक नेयार करब। सादर
ReplyDeleteअपनी बात आप हिंदी में लिखने का कष्ट करें.
DeleteShri dhar das ji ke baare mein thoda aur jaankaari dijiye.
DeleteNarangwali karnatka mein nhi hai
DeleteNārangwali in Punjab is located in Pakistan about 144 mi (or 232 km) south-east of Islamabad, the country's capital town.
Current time in Nārangwali is now 10:11 AM (Saturday). The local timezone is named Asia / Karachi with an UTC offset of 5 hours. We know of 9 airports close to Nārangwali, of which two are larger airports. The closest airport in Pakistan is Sialkot Airport in a distance of 32 mi (or 51 km), North-West. Besides the airports, there are other travel options available (check left side).
There are two Unesco world heritage sites nearby. The closest heritage site in Pakistan is Fort and Shalamar Gardens in Lahore in a distance of 51 mi (or 81 km), South-West.
While being here, you might want to pay a visit to some of the following locations: Narowal, Sialkot, Gujranwala, Gujrat and Lahore. To further explore this place, just scroll down and browse the available info.
Aap ko mein ek link bhej raha hoon kripya waha jaa kar dekh saktey hai.
ReplyDeletehttp://kayasthcharitabletrust.com/श्री-चित्रगुप्त-भगवान-का/
बहुत ही अच्छा जानकारी मिला है l
ReplyDeleteअभिलाष जी प्रणाम,
ReplyDeleteअभिलाष जी अगर लड़का और लड़की दोनों ३ वर्ष से प्रेम में हो, और उनकी जाती भी कारण कायस्थ ही हो, परन्तु विवाह के समय उन्हें ज्ञात हो कि उनका मूल एक है, तब क्या किया जाए, ये तो काफी दुखद हो जाएगा दोनों क लिए ही क्यूंकि वो दोनों प्रारम्भ से ही प्रेम में थे और उन्हें लगता था कि विवाह में दिक्कत आएगी नहीं क्यूंकि जाती एक ही है, ये मूल वाला ज्ञान तो काफी बाद में जाके ज्ञात हुआ
कृपया बताएं कि ऐसे में क्या किया जाए, कृपया कोई उपाय या कुछ बताएं ताकि इतनी दुखद घटना का कुछ समाधान निकले