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रंगोली |
दीवाली आ चुकी है। आज धनतेरस है पिछले एक हफ्ते से टालते - टालते घर में रखे भगवान मंदिर को सफाई करने में लग गया। ईश्वर के प्रति मेरी भावना शून्य है। ऐसा इसलिए नही की मैं भगवान को नही मानता हूं या कुछ। दरसल मेरे मन में श्रद्धा के भाव उत्त्पन्न नहीं होते है।
खैर, मुद्दे पर आते हैं।
कल की दीवाली और आज की दीवाली में क्या अंतर है? आज अपनापन नहीं है। मुझे याद है जब बाबा दादी थे उस समय दीवाली के समय पोता - पोतियों के मुँह से फरमाइश गिरने की देर रहती थी। अगले पल वह समान सामने मौजूद। वह दौर अलग था। संयुक्त परिवार की अवधारणा हुआ करती थी। घर के सभी लोग नए कपड़े खरीदते थे। सब मिल कर दीवाली की तैयारी महीनों से लग जाते थे। बच्चें दिन - दिन भर धूप में पठाके डाल कर उसकी रखवाली भी करते थे। भारतीय परंपरा ने हमें ये दिमाग में डाला बहने साफ- सफाई में माँ चाची की हाथ बटाएंगी। घर के लड़के पापा चाचा के साथ मार्केटिंग की जिम्मेदारी होती थी। वह अलग बात है असली मार्केटिंग मम्मी - पापा ही जा कर करते थे। उन्हें घर का बजट पता रहता था। उस बजट में भी वह सबके पसंद की सामग्री ले आते थे। खुशियों का त्योहार हुआ करता था दीवाली। पटाखों का भी वर्गीकरण भारतीय परिवारों में देखने को मिलता था। छोटे बच्चे बीड़ी बम, बड़े भैया हाइड्रो बम, उसके बाद पूजा कर के आंगन में आई घर की महिला मंडली। पापा और चाचा की जिम्मेदारी होती थी, महिलाओं के लिए अनार, चकरी , छुरछुरी जैसे पटाखे बचा के रखें। घर में नई बहू आयी है तो उनके लिए भी हाइड्रो बम बचा के रखना होता था। नयी भाभी या नयी चाची घर के बच्चों के साथ पहले आवाज़ वाले बम का मजा फिर तस्वीर के लिए सभी के साथ अनार और चकरी। यह क्रम चलते रहता था। दूसरे दिन घर के बच्चे जल्दी उठ कर मुआयन पर निकलते थे। रात में कौन - कौन सा पटाखा नहीं जला उसे खोजा जाए।
अब सब कुछ बदल गया है। बाबा दादी वाली पीढ़ी कब की खत्म हो गयी। अब उनका जगह माँ - पापा लोग ले चुके हैं। लेकिन उन्हें पोता - पोतियों का सुख प्राप्त नही है। मेरे जानकारी में एक सिन्हा जी है सरकारी डॉक्टर हुआ करते थे। अब अवकाशप्राप्त है। बेटा सब पढ़ के जेंटलमैन हुए तो दूसरे राज्यों में चले गए। छुट्टी मिलती नहीं है। इसी बीच सिन्हा जी से भेंट हुई। किसी बिजली मिस्त्री से अपने बंगले पर लाइटिंग करवा रहे थे। खूबसूरत बंगला उजले रंग का उसी रंग का लाइटिंग। लेकिन देखने वाला कौन? सिर्फ सिन्हा जी और उनकी धर्मपत्नी।
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बचपन में मुझे पटाखों से बहुत लगाव था। बाबा सबके पसंद के पटाखे लाते थे। मुझे वह साँप वाला बहुत पसंद था। जिसमें माचिस लगाने से उसमें से सांप की आकृतियां निकलती थी। उसमें धुंए की मात्रा की अत्याधिक रहती थी। धीरे - धीरे युवावस्था में आने लगा। 2013 में घर बटवारें का एक अजीब सा धक्का लगा। उसके बाद से सब पर्व से ही मन उचट सा गया। क्या दीवाली - क्या होली? सब एक जैसा।
इन वर्षों ने मुझे बहुत कुछ सिखाया। घर का सबसे ज़िद्दी लड़का का तमगा मिला हुआ था। आज दीवाली के दिन घर सफाई में लगा हुआ है। मंदिर साफ - सफाई उसे सजाना। फिर दोपहर दो बजे से रात के नौ बजे तक दीवाली की अकेले खरीददारी करना। धनतेरस पर एक कटलरी सेट खरीदा। मुझे तो यह भी नहीं पता था उसे कटलरी सेट बोला जाता है।
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कटलरी सेट |
अकेलापन काफी कुछ सीखा देता है जीवन में। बेटा के साथ - साथ घर की बेटी भी बन जाता हूँ।
खैर अब पुरानी कड़वाहट को भुला कर सब एक हैं। फिर भी कहीं - कहीं उसके अंश मौजूद है।
पटाखे अंतिम बार कब फोड़े थे, यह बात स्मृतिपटल पर विलुप्त हो गयी है। वह कहते हैं ना आप जिस परिस्थिति में होते हैं, आप उसी में ढलने लगते हो। मेरे पास बारह साल से एक झबरा ( पामेरियन) कुतिया है। मेरे लिए तो अभी भी वह मेरी बच्ची है। लेकिन सही मायने में अब वह बूढ़ी हो चुकी है। पटाखों के आवाज़ से एकदम डरी सहमी रहती है। वही स्थिति मेरे साथ है। तेज आवाज़ वालो पटाखों से मुझे भी डर लगता है।
आज बाज़ार जाते समय कुछ बच्चें तेज़ आवाज़ वाले पटाखे फोड़ रहे थे। वह आवाज़ सुन कर मेरे मुँह से निकल गया , “कितने जाहिल बच्चें है”। वैसे बच्चें कभी जाहिल नहीं होते हैं। जाहिल वाली पंक्ति तो डर के कारण मुँह से निकल आया।
ऊपर की पंक्ति में लिखा था, बाबा - दादी हम पोता - पोतियों की सभी माँगे पूरी कर देते थे। उस समय पैसों की अहमियत नहीं पता रहती थी। अब अहमियत पता है। इसलिए धनतेरस में मुझे जो चाहिए था मैंने मटिया दिया। मेरे लिए तो दीवाली वही टीवी रूम में टीवी देखते हुए बीत जानी है। मैं और ब्राऊनी (मेरी पालतू कुतिया) और मेरा मोबाइल। जिसमें पीयूष मिश्रा का गाना - “ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है”।
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आप सभी को मेरी ओर से शुभ दीवाली। पटाखे फोड़ना है तो जम के फोड़िये नहीं फोड़ना है तो मत फोड़िये।
घर का मंदिर की सजावट आप सब को कैसी लगी जरूर लिखियेगा।
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मंदिर |
अभिलाष दत्ता
मंदिर सजावट सुंदर और दिल से लिखी पोस्ट अति सुंदर
ReplyDeleteआभार माँ।।
Deleteआपका आशीर्वाद है।