Tuesday, May 7, 2019

हैप्पी फ्रेंडशिप डे

07 मई 2011
हाँ आज ही का तो दिन था। हाँ आज की तो दिन था। जब हम पहली बार मिले थे। मई की चिलचिलाती गर्मी थी, कंप्यूटर क्लास था, शाम का वक़्त वक़्त था, नया बैच था। टैली सीखने गए थे। घर में खाली ही बैठे थे उन दिनों। वैसे भी इंटर में आर्ट्स लेने वालों को घर वाले “घर की मुर्गी के बराबर” ही समझते हैं।
हाँ तो वह आयी,
कितनी शालीनता थी उसके चेहरे पर। मुझे याद है पहले क्लास में 8 लड़कियां और 3 लड़के थे। चलो लड़कियों की संख्या यहाँ तो अधिक थी। उसकी बड़ी बहन भी थी बैच में। आर्ट्स स्ट्रीम होने की वजह से कॉमर्स स्ट्रीम की पढ़ाई मेरे समझ से बाहर हो रही थी। वह भी आर्ट्स स्ट्रीम की ही स्टूडेंट थी।
घर में फालतू बैठे रहने के कारण मैं क्लास आधे घण्टे पहले चला आया करता था। घर में उपन्यास छिपा के पढ़ना पड़ता था। एक कोचिंग ही था जहाँ बिना किसी डर के उपन्यास पढ़ पाता था। वह रोज़ मुझे उपन्यास पढ़ते हुए देखती थी। उन दिनों भारतीय लेखकों की अंग्रेजी उपन्यास पढ़ने का चस्का लगा हुआ था। उन दिनों, अंग्रेजी उपन्यास सामने वाले पर एक अलग छाप छोड़ता था।
एक दिन उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने मुझसे पूछ डाला - आप हमेशा उपन्यास पढ़ते हैं। मैंने हाँ में जवाब दिया। तब उन्होंने बताया कि उन्हें भी उपन्यास पढ़ने का मन करता है। मेरे कुछ बोलने से पहले उनकी बड़ी बहन ने मुझसे कहा - आप हमें भी दे सकते हैं उपन्यास पढ़ने के लिए।
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उस दिन वह उपन्यास मेरे बैग में वापस न जाकर, उनके लेडीज पर्स में छुप कर चला गया। 5 दिन हो गए पर उपन्यास वापस आयी नहीं। मुझे बेचैनी हो रही थी, पर मैंने कुछ कहा नहीं। अगले दिन उपन्यास मेरे हाथ में था। उनकी बड़ी बहन ने बताया - क्या बताऊँ अभिलाष जी एक पेज पढ़ने के बाद ही मेरा सर दर्द करने लगा। ये तो छोटी ने इसको रात - रात भर जग के पढ़ी है। मोबाइल की रोशनी जला कर।
मैं छोटी वाली की तरफ देख कर मुस्कुरा दिया। उनके चेहरे पर भी मुस्कान थी। उसके बाद उपन्यास पर चर्चा होने लगी।।
अब ये रोज़ का सिलसिला हो गया। उपन्यासों के जरिये हमारी दोस्ती आगे बढ़ रही थी। उपन्यास इस दोस्ती में सूत्रधार बन रहे थे।
हम दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो चुकी थी। वह मेरे बारे में क्या सोचती ये तो मुझे आज तक पता नहीं चला। पर मेरे दिल के किसी कोने में एक मीठी घन्टी बजी थी।
एक दिन उन्होंने बताया कि वह कविताएं लिखती हैं। तभी पीछे से उनकी बड़ी बहन ने कहा - अभिलाष जी दो डायरी लिख के रखी है।
मेरे मुँह से केवल एक शब्द निकला - अरे वाह! क्या बात है।
मैंने उनसे कहा - क्या आप अपनी कविता मुझे नहीं देंगी पढ़ने?
उनकी बड़ी बहन ने कहा - किसी को नहीं दी है पढ़ने। सिर्फ मैंने पढ़ी है।
यह सुनकर मैंने कहा - अगर कोई बात है तो कोई दवाब नहीं है डायरी देने की।।
अगले दिन वह डायरी मेरे बैग में थी। उनकी बड़ी बहन ने हँसते हुए कहा - अरे वाह अभिलाष जी! आप तो नसीब वाले निकले। आप मेरे बाद दूसरे इंसान है जो इस डायरी को पढ़ने वाले हैं। मुझे तो उतना समझ नहीं आया। लेकिन अच्छा लिखती है। पढ़ के बताइएगा।
वह डायरी तकरीबन मैंने 1 महीने अपने पास रखा था। मैंने सारी कविता पढ़ डाली थी।
मेरे पास कोई शब्द नहीं थे। केवल यही दिमाग में था कि कितना टैलेंट है इस लड़की है। अगर अपने दिल पर हाथ रखूं तो यही कविताएं मुझे लेख़क बनने की प्रेरणास्रोत थी और है।
मैंने उन्हें डायरी वापस कर दिया। केवल एक शब्द कहा - लिखना छोड़ना मत!
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4 महीने का कोर्स था। जो अब ख़त्म होने वाला था। क्लास खत्म होने से एक हफ्ते पहले ही मैं क्लास छोड़ने वाला था। ये बात पूरे क्लास को पता थी। जिस दिन मेरा अंतिम क्लास था, वह एक सादा  कॉपी मेरे पास लेकर आयी और कहा - अभिलाष आप इसपर अपना ऑटोग्राफ दीजिये।
मेरा मुँह खुला रह गया था। मैंने उनसे कहा - मैंने जीवन में ऐसा कोई बड़ा कार्य नहीं किया है। जो आप मेरे ऑटोग्राफ लें।
उन्होंने सिर्फ इतना कहा - आप बहुत अच्छे इंसान है। आप बहुत आगे जाएंगे।
मैंने अपना ऑटोग्राफ दे दिया। जीवन का पहला ऑटोग्राफ दिया था मैंने।
ऑटोग्राफ लेने के बाद उन्होंने कहा था - इसे जीवनभर अपने पास रखूंगी।।
पीछे उसके बड़ी बहन का हो - हो सुनाई दे रहा था। जाते - जाते उन्होंने अपना नंबर मुझे दिया। उन दिनों लड़कियों के नंबर मिलना पारस पत्थर मिलने जितना बराबर था।
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मैं जा चुका था।
अब हमारी दोस्ती फ़ोन पर नया रूप ले रही थी। उनके बर्थडे पर सबसे पहले मैसेज भेजना और मेरे बर्थडे पर उनका सबसे पहले मैसेज आना।
इसके बाद मैं पढ़ाई के लिए बंगाल चला गया। लेकिन संपर्क कभी टूटा नहीं। दोस्त थे और आगे भी दोस्त रहे।
अवसाद के दिनों में भी वह हिम्मत देती रहीं। पटना वापस आने के बाद 6-7 महीनों में एक - आध बार पार्क में मिलने चला जाता था। जिस बेंच पर हम बैठते, उसके एक सिरे पर हम दूसरे सिरे पर वह। और बोलने के लिए कुछ भी नहीं।
अवसादों ने मुझे लेख़क बना दिया। और इसी दौर में वह साहित्य से दूर हुई। या यूँ कहें , हम दोनों एक दूसरे से दूर हुए। उन्हें अपनी भविष्य ठीक करनी थी। और मैं खुद को साहित्य के सागर में झोंकने को तैयार था।
हमारी दोस्ती सिर्फ एक फॉर्मेलिटी बन कर रह चुकी थी। उनके मन में क्या था , ये कभी जान सका। खुद हिम्मत कर के कभी बोल या कुछ पूछ नहीं सका।
आज हमारी फ्रेंडशिप डे है। सिर्फ एक व्हाट्सएप मैसेज...☺️

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अंत में आप सब ये जरूर सोच रहे होंगे मैंने कुछ बोला या पूछा क्यों नहीं।
तो इसका जवाब ये है-
“ये बिहार है,
और हमारी जातियाँ अलग थी”।।

2 comments:

  1. एक्सलियेन्ट मेरे दोस्त, सबसे पहले आपकी दोस्ती आज भी कायम है ये जानकर खुशी हुई और आप साहित्य वे सागर में हमेशा गोता लगाते रहिये और साहित्य के सागर की गहराइयों तक जाए और अपनी अनमोल यादों को साहित्य के सागर से फिर ढूंढ के ले आये।। All the best

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  2. तो आपके जीवन की प्रेरणा ये हैं, बहुत अच्छा लगा पढ़कर। आपके ब्लॉग पेज पर अब हम भी जुड़ गए हैं। 😃

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