Sunday, May 12, 2019

मातृ दिवस : प्रतिपल नमन (लेख्य - मंजूषा)

मातृ दिवस : प्रतिपल नमन



“घर के अंदर ही माँ पूरी पाठशाला है”। उक्त पंक्तियां आदरणीया  कृष्णा सिंह जी ने साहित्यिक संस्था लेख्य मंजूषा, पटना के त्रैमासिक कार्यक्रम “मातृ दिवस: हर पल नमन" के अवसर में कही। अपने व्यक्तव मे  कृष्णा सिंह जी ने मंच से कहा कि माँ हमारे जीवन का अस्तित्व है। माँ के लिए तो पूरा जीवन कम पड़ जाता है। हमारा हर दिन माँ के लिए होता है।
मुख्य अतिथि के तौर पर वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने अपने लेख्य मंजूषा की पत्रिका “साहित्यक स्पंदन" में प्रकाशित स्वर्गीय प्रेमचंद जी की रचना ईदगाह पर रोशनी डालते हुए कहा कि अगर आज हर इंसान खुद को हमीद बना ले तो वृद्धाश्रम की जरूरत नहीं पड़ेगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार व लघुकथा के पितामह डॉ. सतीशराज पुष्करणा ने इस मौके पर कहा कि आज की सभी रचना माँ को समर्पित थी। आज के दिवस किसी की रचना को जज नहीं किया जा सकता है। जो बातें आज रचना में सुनने को मिली है उसे हमें अपने जीवन मे आत्मसात करना चाहिए।
लेख्य- मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा कि मैं एक माँ हूँ, स्त्री जब माँ बनती है तो जीवन पर माँ ही बन कर रह जाती है। संस्था के सभी सदस्य मुझे माँ कह कर ही सम्बोधन करते हैं।
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आज के कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए पहले दीप प्रज्वलित करने के बाद, साहित्यिक स्पंदन पत्रिका का लोकार्पण किया गया।
मौके पर महशूर गजलकार समीर परिमल ने चुनावी दौर पर व्यंग्य करते हुए अपनी कविता का पाठ करते हुए कहा कि एक वोट के दम पर सरकार बदलता हूँ।
कार्यक्रम में निलंशु रंजन, आयाम संस्था के अध्यक्ष गणेश जी भागी, समाजसेवी रेशमा प्रसाद जी उपस्थित थी।
मंच संचालन ईशानी सरकार ने किया। धन्यवाद ज्ञापन रवि श्रीवास्तव ने किया।

आज के कार्यक्रम में जो कविताएं पढ़ी गयी। उनकी पंक्तियां:-

01. *सीमा रानी*- बरसों पहले छोड़ गयीं वो
ढेरों सपने तोड़ गयीं वो
मुख अपना मोड़ गयीं वो
तन्हा मुझको छोड़ गयीं वो
 
02. *प्रियंका श्रीवास्तव "शुभ्र"*- "माँ मात्र एक संबोधन नहीं
ये शब्द करे तन मन स्पंदन
हृदय का है प्यार उद्गार
जिसका न होता कोई आभार।"

03. *राजेन्द्र पुरोहित* – तुम सोचते हो
वो सिर्फ नौ महीने सहती है
प्रसव पीड़ा
सिर्फ नौ महीने...
नहीं
कदापि नहीं...

04. - *रब्बान अली*– दुनिया के सारे रिश्तो से अफजल है मेरी माँ
ये कायनात तेरे दम से है मेरी
प्यारी माँ

05. *पम्मी सिंह 'तृप्ति'* – बाकी सब जहाँ के रवायतों में सहेज रखा ..
पर.. जब भी घिरती हूँ दुविधाओं में
माँ..सच तेरी, बहुत कमी खलती है,

06. *श्रुत कीर्ति अग्रवाल* - जब-जब चोट लगी मेरे तन को, याद तुम्हीं क्यों आईं माँ?
हर संकट हर दुख में मैंने,
तेरी ही रट क्यों लगाई माँ?

07. *शशि शर्मा 'खुशी'*- अपने दुख का,
साया भी नहीं पड़ने देती
मगर मेरे हर दुख को
समेट लेती अपने आँचल में

08. *श्वेता सिन्हा* - गर्व सृजन का पाया
बीज प्रेम अंकुराया
कर अस्तित्व अनुभूति
सुरभित मन मुस्काया

09. *राजकांता राज* – मेरी प्यारी माँ तुझे सलाम तूझे सलाम
मुझे खाना खिलाया छोड़ सब काम
मेरी न्यारी माँ तूझे सलाम तूझे सलाम
मुझे ड्रेस पहनाया बिना देखे दाम

10. *ज्योति मिश्रा* – है एक भाव ममता का बस;  जग समझे इसकी भाषा है
वह शब्दकोश भी मिला नहीं ,  जिसमें मां की परिभाषा है  ।।

11. *सुबोध कुमार सिन्हा* -गढ़ा है अम्मा तुमने मुझे
नौ माह तक अपने गर्भ में
जैसे गढ़ी होगी
उत्कृष्ट शिल्पकारियाँ
बौद्ध भिक्षुओं ने कभी
अजंता-एलोरा की गुफाओं में

12. *शाईसता अंजूम* - माँ की यादे
माँ तेरे आँचल की छाँव न रही
कौन मेरी खौरियत की दुआ करेगा

13. *कृष्णा सिंह* - माँ के प्यार में गंगा की धार है
माँ तो सौम्य व शुचि संस्कार है
सुर, नर, मुनि की स्तुति का सार है
माँ!  ईश्वर का दिया सर्वोत्तम उपहार है।

14. *अणिमा श्रीवास्तव* - बस इसी में सिमटी है, तेरी इबादत।
क्या तुझसे बढकर भी हो सकती है कोई नेमत
खुदा ने भी जिसे दुआओं में माँगा
तू वो मन्नत है।
यू हीं नहीं कहते तेरे पैंरो तले जन्नत है।

15. *सिन्धु कुमारी* -देकर वह अनमोल धन , लेती एक न भेंट ।
माँ स्नेहिल-सी चासनी , रग-रग देती फेंट।।

16. *मधुरेश नारायण* - ओ ! माँ ! मुझे क्यूँ इतना तू सताती है?
क्यूँ मुझसे इतनी दूर चली जाती है ?
जब तक रही तू,तेरा क़द्र ना किया
जाने के बाद तेरी याद बहुत आती है !

17. *डॉ. पूनम देवा* -कैसे  भूल लूँ  माँ  तुम्हारा वो प्यार- दुलार,
तुम्ही ने तो दिया था
हम सब को संस्कार,
तुम ही थी,हमारे घर की
फूल   " सदाबहार" ।

18. *मीरा प्रकाश*  - यह उनका घर है
 उन्हीं का घर है ,
लेकिन फिर भी कभी मां को ये घर
मायका सा लगने दो।

19. *कमला अग्रवाल* -सृजनता की पहली कड़ी है माँ ,
नौ महीने कोख में रख ,
असहय वेदना को सह ,
हमें धरती पे लाती है माँ ॥

20. *प्रेमलता सिंह* (2) –माँ !आज भी  मुझे  वो दिन याद है, जब तू रोया  करती थी ।
 तकलीफ  मुझे भी होती थी
 तेरे रोने की  आवाज  मैंने  भी सूनी थी।

21. *मीनाक्षी सिंह* -सरस शीतल तरल तरंग / माँ के आँचल का हर रंग।
जितना सुकून यहां मिलता है
सारे जहां मे कहाँ मिलता हैं।

22. *अमृता सिन्हा* -काश तेरे आँचल तले
तमाम उम्र गुज़र जाती
थाम कर ऊँगली, ओ माँ
तू बचपन मेरा, फिर ले आती

23. *सुधांशु कुमार* –माँ की ममता
माँ का आँचल
प्यार स्नेह का सागर ।।
माँ का आशीर्वाद
भगवान का प्रसाद ।।
माँ की मीठी बोली
कानों की   लोरी ।। 
माँ में ही संसार
माँ में ही जीवनसार।।
   
24. *सुनील कुमार* –माँ का आँचल धरती अंबर लगता है
रूप सलोना स्नेह सरोवर लगता है

प्रेम शजर उसने ही दिल में है बोया
दिल उसका परियों सा सुंदर लगता है

25. *संजय कुमार 'संज'* -पिता की सत्ता और
शासन की संप्रभुता में
राज तुम्हारा यूँ भी रहा
कभी हँसी तू महफ़िल में
कभी अकेले आॅ॑सू भी बहा

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