Friday, July 27, 2018

ईमानदारी का इनाम.....?

LATE SHUBHNARAYAN DUTTA  ( D.W.O SITHAMADHI )










मई 2018 खत्म होने जा रहा था , और जून दस्तक देने को तैयार था । पर अभी जून को आने में पाँच घण्टे बाकी थे । इन पाँच घण्टे में बिहार में दुबारा “जंगलराज” की खनक दुबारा सुनने को मिली| बीते 31 मई को सीतामढ़ी में अज्ञात अपराधियों के द्वारा जिला कल्याण पदाधिकारी शुभनारायण दत्त की हत्या कर दी गयी । पुलिस अपना कोरम पूरा करते हुए लाश को लावारिस समझ कर सीतामढ़ी अस्पताल में रख दिया । जब प्रशासन को इस बात की खबर लगी मरने वाला व्यक्ति कोई आम आदमी नहीं बल्कि जिले का कल्याण पदाधिकारी है , तो पूरी प्रशासन नींद से जाग कर सक्रिय हुई । सीतामढ़ी पुलिस के सभी बड़े अधिकारियों की गाड़ी सदर अस्पताल के सामने पार्क हो चुकी थी । 
मीडिया से मुख़ातिब होते हुए सीतामढ़ी एसपी विकास बर्मन ने बताया कि तीन अज्ञात कातिलों ने जिला कल्याण पदाधिकारी के शरीर पर सात गोलियाँ चलाई । जिससे उनकी मौत मौके पर ही हो गयी । 
शुभनारायण दत्त का परिवार पटना के दीघा में रहता है । उन्हें खबर कर दी गयी थी । देर रात बारह बजे शुभनारायण दत्त के परिजन सीतामढ़ी सदर अस्पताल पहुँच चुके थे । लाश का पंचनामा होने के बाद लाश को परिजनों को सौंप दिया गया । 






सामान्यतः , रात के वक़्त उस अस्पताल में पंचनामा नही होता है , लेकिन सीतामढ़ी डीएम के आदेश पर रात में ही पंचनामा किया गया । शायद डीएम साहब हॉस्पिटल में बढ़ रहे भीड़ से परेशान थे । लोगों और मीडिया के तमाम सवालों पर पुलिस वाले बगले झांकने पर मजबूर थे । उन्हें इस बात का अंदेशा लग चुका था , कि अगर शुभनारायण दत्त की लाश सुबह तक सीतामढ़ी में मौजूद रही तो सुबह तक शहर में कर्फ्यू ( धारा 144 ) की नौबत आ सकती है । 

टीवी के खबरों से पता चला कि शुभनारायण दत्त कायस्थ थे । वह मूल रूप से मधुबनी के रहने वाले थे । टीवी पर उनके चचरे भी अरुण कुमार दत्त ने बताया कि शुभनारायण दत्त की छवि एक ईमानदार अफसर की है । शुभनारायण दत्त अपनी इस पोस्टिंग से खुश नहीं थे । वह हमेशा बोलते थे ऑफिस में इतना तनाव है कि कभी - कभी मन करता है कि समय से पहले वीआरएस ले लूँ । 
हत्या को चौदह दिन खत्म हो चुके थे । तस्वीर अब भी धुंधली  थी । सीतामढ़ी पुलिस अब भी खाली हाथ थी । सुशासन में जंगलराज जैसे शब्द धीरे - धीरे सुनाई देने लगी । 
शुभनारायण दत्त के घरवालों के तरफ इस घटना को लेकर रोज़ सोशल मीडिया पर कुछ न कुछ लगातार पोस्ट हो रही थी । ज्यादा से ज़्यादा से लोगों तक यह खबर पहुँचे इसके लिए सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल किया गया । 
“मैं भारतीय नहीं , मैं कायस्थ हूँ" .... तमाम पोस्ट के बीच एक पोस्ट यह भी फेसबुक पर देखने को मिली । पोस्ट करने वाला शुभनारायण दत्त का ही कोई रिश्तेदार था । अपने पोस्ट में उसने तीखा कटाक्ष बिहार सरकार , भारतीय राजनीति और देश की मीडिया पर किया था । पोस्ट में साफ - साफ बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था कि शुभनारायण दत्त एक सामान्य वर्ग से आते थे , इसलिए किसी नेता ने जरूरी नही समझा की उनके घर के लोगो से मिला जाए । प्रिंट मीडिया तो पहले ही बिकी हुई है वह तो इस घटना का फॉलो-अप तक नहीं देने वाली , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को इस घटना से क्या पड़ी है ? अगर शुभनारायण दत्त दलित , महादलित या मुस्लिम होते तो अभी तक पूरे देश की मीडिया एक लहर पैदा कर चुकी होती । राज्य तो छोड़िए , केंद्र तक कि सरकारें हिल चुकी होती । लेकिन हम कर्ण कायस्थ है यानी सामान्य वर्ग , हम संख्याबल में कम है । जब हमारी चिंता किसी सरकार को नही है तब मैं अपने आप को क्यों भारतीय मानू , आज से मैं सिर्फ और सिर्फ कायस्थ हूँ । 
यह पोस्ट एक दिन में दो सौ के करीब शेयर हुई । कलम के सिपाही माने जाने वाले कायस्थ समुदाय आज अपने आप को अकेला महसूस कर रही थी । सबसे शांत मानी जाने वाली जाती कर्ण कायस्थ अब सड़क पर उतरने का विचार कर रही थी । 10 जून 2018 को कर्ण कायस्थ महासभा ने कैंडल मार्च का प्रस्ताव रखा । 10 जून 2018 को गर्दनीबाग में कैंडल मार्च में कर्ण कायस्थ महासभा समिति के सदस्यों के साथ - साथ और भी लोगों ने हिस्सा लिया । बाँह पर काली पट्टी बांध कर हाथ में मोमबत्ती लेकर , सबसे शांत समुदाय आज सड़क पर मार्च कर रही थी । बेशक सँख्या में केवल 100 लोगों ही थे । लेकिन उन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान हो रहा था , उनमें एकता का संचार हो रहा था । इस कैंडल मार्च का ज्ञापन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सौंपा गया और उनसे सीबीआई जाँच की माँग की गई । दूसरे दिन  दिल्ली कर्ण कायस्थ महासभा के सदस्यों ने देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह को ज्ञापन सौंपा और उनसे भी सीबीआई जाँच की माँग की गई । पर दोनों जगहों से केवल आश्वासन के सिवा और कुछ नहीं मिला ।


समय के साथ लोग इस हत्याकांड को भूलते जा रहे थे । बीच में कुछ अपवाहें भी उड़ी । सुनने में यह आया कि सीतामढ़ी पुलिस केस का एंगल बदल कर शुभनारायण दत्त के छवि को धूमिल करना चाहती है । एक अपवाह यह भी थी कि इस हत्याकांड के पीछे सीतामढ़ी जिला कल्याण विभाग के नाज़िर का हाथ है ।
शुभनारायण दत्त के परिजनों के साथ - साथ बिहार की जानता को अब लगने लगा था कि इस केस का कुछ नहीं होने वाला है ।
हत्याकांड के 21वें दिन पटना एसएसपी मनु महाराज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में , सीतामढ़ी जिला कल्याण पदाधिकारी शुभनारायण दत्त के हत्या में शामिल दो कातिलों को पटना के कुर्जी स्तिथ बालुपर से गिरफ्तार किया गया है । साइको किलर राम जी राय उसके साथ लाइनर सोहन ठाकुर को , सीतामढ़ी पुलिस , दीघा थाना पुलिस और सिटी एसएसपी मनु महाराज के नेतृत्व में इन दोनों को गिरफ्तार किया गया । 
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पुलिस के पूछ ताछ में राम जी राय और लाइनर ने यह बताया कि उन्हें हत्या की सुपारी गोपालगंज जेल में बंद चिरंजीवी ने दी थी । चिरंजीवी को हत्या की सुपारी सीतामढ़ी के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक मोहम्मद अली अंसारी उर्फ बबलू मास्टर ने दी थी । बबलू मास्टर स्थानीय बीजेपी जिला अल्पसंख्यक अध्य्क्ष शाहीन प्रवीण का पति है । बबलू मास्टर चिरंजीवी से मिलने गोपालगंज जेल गया था । और जेल में ही राम जी राय की मुलाकात बबलू मास्टर से हुई थी । जिला कल्याण पदाधिकारी की हत्या के लिए पाँच लाख का सौदा हुआ था । जिसमें दो लाख एडवांस के तौर पर मिला था , बाकी काम होने के बाद । हत्या के दिन लाइनर सोहन ठाकुर ने ही राम जी राय को फ़ोन से जानकारी दी थी कि जिला कल्याण पदाधिकारी घर के बाहर टहलने के लिए निकल चुके है । उसके बाद राम जी राय , अरुण भगत और विकास यादव पल्सर बाइक पर सवार हो कर कैलाशपुरी के डुमरा थाना के आगे गाड़ी रोक गोली चला दी । पहली गोली राम जी राय ने ही चलाई थी । कुल सात गोली जिला कल्याण पदाधिकारी के शरीर पर चलाई गई थी ।। हत्या करने के बाद राम जी राय और सोहन ठाकुर पटना भाग गए । जहाँ वह दोनों मजदूर बन कर कुर्जी में छिपा हुआ था ।
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इसके बाद एसआइटी की टीम ने बबलू मास्टर के दोनों घरों में छापेमारी की । छापेमारी के दौरान पता चला कि बीजेपी नेत्री शाहीन परवीन बबलू मास्टर की दूसरी पत्नी है । छापेमारी बबलू मास्टर के घर से आपत्तिजनक समान बरामद किया । जिला कल्याण कार्यालय से जुड़े कागजात भी बरामद हुआ । 
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पूरी तफ्तीश हो जाने के बाद पुलिस ने मीडिया को सारी बातें विस्तार से बताते हुए कहा , की बबलू मास्टर के खाते में जिला कल्याण विभाग के तरफ से 70 लाख की राशि तीन किश्तों में जमा की गई । यह पैसे पुराने जिला कल्याण पदाधिकारी गरभु मंडल के कार्यकाल के समय हुआ , जिसकी जानकारी शुभ नारायण दत्त को लग चुकी थी । उन्होंने बबलू मास्टर पर दवाब बनाया की वह सारे पैसे विभाग को वापस कर दे । लेकिन बबलू मास्टर ने पैसे नहीं वापस किए , बल्कि उसने जिला कल्याण पदाधिकारी पर दवाब बनाने लगा कि उसे जिला कल्याण विभाग के तरफ से औऱ राशि आवंटित किया जाए । शुभनारायण दत्त को इस बात की भी भनक लग चुकी थी कि उनके विभाग के कुछ लोग बबलू मास्टर के साथ जुड़े हुए है , इस चीज़ को बाहर लाने के लिए वह अपने स्तर पर जाँच करने लगे । इसी कारण वह विभाग के अन्य लोगों की नज़रों में खटकने लगे । 
राम जी राय की गिरफ्तारी के बाद से बबलू मास्टर फरार है । राम जी राय पर पहले से ही 11 संगीन मामले दर्ज है ।
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बबलू के फरार होने के बाद उसके घर पर कुर्की जब्ती के निर्देश जारी कर दिया गया । पुलिस जाँच में यह बात सामने आई कि शुभनारायण दत्त की हत्या की साजिश दो माह से रची जा रही थी । सीतामढ़ी डीएम ने बताया कि जिला कल्याण विभाग में बहुत बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार हो रहा था , इस लिए 2010 से लेकर अभी तक कि सभी फाइलो को देखा जा रहा है ।  बबलू मास्टर को उसके पद से हटाने के लिए पीएमओ तक चिट्ठी भेजी गई थी , फिर भी वह अपने पद पर कायम रहा ।
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पुलिस की बढ़ती दबिश के कारण आखिरकार मुख्य आरोपी बबलू मास्टर ने सीतामढ़ी के सिविल कोर्ट में 29 जून को आत्मसमर्पण कर दिया । जहाँ से उसे 11 जुलाई तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया । हर आरोपी की तरह उसके पास भी अपने बचाव के लिए 15 पेज की मेडिकल रिपोर्ट थी । उसकी पत्नी बीजेपी नेत्री शाहीन परवीन ने तो सीधे सीधे अपने पति को बेकसूर बता दिया , साथ ही उन्होंने इस हत्या की जिम्मेदारी राम जी राय के ऊपर डाल दी । बीजेपी नेत्री ने मीडिया को बताया कि राम जी राय की निजी दुश्मनी के कारण उनके पति बबलू मास्टर का नाम इसमें घसीटा गया ।
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MD. ALI ANSARI ( BABLOO MASTER )

जब इस पूरे मुद्दे पर शुभनारायण दत्त के छोटे बेटे शैलेन दत्त उर्फ रोहित ने कहा कि , इन सभी कातिलों को और जो मुख्य साजिशकर्ता है उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए । उनलोगों ने केवल पिताजी को ही नहीं मारा है । उनलोगों ने मेरी नानी कुसुम चौधरी को भी मारा है । मेरे घर की हँसी को मारा है ।
आगे की बातचीत में वह बताता है कि 30 मई को उसका अंतिम वर्ष का परीक्षा खत्म हो चुका था । वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का छात्र है । 31 को वह वाराणसी ने दानापुर आया , दानापुर आते - आते शाम के 7 बज चुके थे । एक दोस्त मुझे स्टेशन पर लेने आया था , उसे खबर मिल चुकी थी कि मेरे पिताजी की हत्या हो चुकी है । पर उसने मुझे नहीं बताया , उसने केवल मुझे मेरे घर तक पहुँचा दिया । घर के बाहर चप्पल जूतों की भीड़ देख कर मुझे कुछ अजीब लगा । तभी अपनी माँ के रोने और चिल्लाने की आवाज़ सुन कर मैं ऊपर की ओर भागा....
कुछ ही देर में मुझे पता लग गया कि मेरे पिताजी अब इस दुनिया मे नही रहे । मैं रोज़ उनसे रात को फ़ोन पर बात किया करता था , आज से किससे बात करूँगा । यह सोच कर मेरा दिमाग फटा जा रहा था । पर मैंने अपने आँसू को रोक लिया औऱ माँ को सम्भालने में लगा गया । कुछ देर बाद मैं अपने रिश्तेदारों के साथ सीतामढ़ी सदर अस्पताल के लिए निकल गया । सीतामढ़ी अस्पताल में मुझे अपने पिताजी की लाश की शिनाख्त करनी थी । उनके माथे पर चार गोलियां मारी गयी थी । एक पेट पर और एक छाती के पास । उनके पूरे शरीर में केवल खून ही दिखाई दे रहा था , चहेरा तो कहीं गायब सा हो गया था । अपनी ज़िंदगी में पहली बार इस तरह के हालात का सामना मैं कर रहा था । पहली बार इतने पुलिस और मीडिया को अपने सामने पाया । अपने पिताजी की लाश को देखर मैं बहुत जोड़ से रोया । ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पेट के अंदर कोई मुक्का मार रहा हो । मुझे पिताजी की केवल एक बात ही याद आ रही थी , वह हमेशा कहा करते थे कभी भी हराम का पैसा मत खाना । वह आफिस में चाय भी अपने पैसे का पीते थे । जून में उनका तबादला पटना होने वाला था । पर उन्हें मई के अंतिम दिन मार दिया गया ।
इस घटना की सीबीआई जाँच हो इसके लिए हम सब मुख्यमंत्री , उपमुख्यमंत्री सब से मिले । लेकिन केवल आश्वासन मिला और कुछ नहीं । 
माँ की हालत रोज़ बिगड़ते जा रही थी । वह रह - रह कर चिल्लाने लगती थी । अगल - बगल के लोग उन्हें पागल तक बोलना शुरू कर दिया था । ये चीज़ मेरी नानी कुसुम चौधरी रोज़ देख रही थी । इसी क्रम में 7 जून को नानी सदमा लगने के कारण हृदयाघात हुआ और वह भी हम लोग को छोड़ के चली गयी । मेरा पूरा परिवार टूट चुका था । इस बार मेरी माँ रोना तो चाह रही थी , पर उसके आँसू खत्म हो गए थे । वह केवल चिल्लाती थी । दो दिन तक उसे विश्वास नहीं हुआ उसकी माँ अब इस दुनिया मे नही है ।
10 जून को हुए कैंडल मार्च में यह देख कर पूर्ण विश्वास हो गया मेरे पिताजी सही थे । 20 जून को जब दो कातिल कुर्जी से गिरफ्तार हुए , तब मैं और मेरा परिवार डर गया । क्योंकि मेरे मामा का घर कुर्जी गोशाला में है , और दो दिन पहले ही नानी का काम खत्म हुआ था । हम सब को यही लग रहा था वह दोनों अपराधी मेरे परिवार पर नज़र रखे हुए था । लेकिन ऐसा कुछ नहीं था । अब मुझे केवल न्याय चाहिए ।।।
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खैर , भविष्य का ऊँट किस करवट बैठेगा यह बताना तो मुश्किल लग रहा है । पर एक बात तो पक्की है शुभनारायण दत्त के परिवार को न्याय पाने के लिए एक बहुत लंबी लड़ाई लड़नी होगी । आरोप - प्रत्यारोपण का दौर लंबा चलेगा । जैसा कि पुलिस बता रही है उसके पास सबूत पर्याप्त है , लेकिन क्या पता दस साल बाद इसी केस में सबूत के अभाव में सभी अपराधी बड़ी हो जाए ?  
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शुभनारायण हत्याकांड के एक महीना बीत चुका है । लेकिन कुछ सवाल अभी भी सबके सामने बड़ा सा मुँह लिए खड़ा है । इतने बड़े पदाधिकारी की हत्या की जाँच राज्य सरकार सीबीआई से क्यों नहीं करवा रही है ? 
राम जी राय , और विकास यादव जैसे अपराधियों पर पहले इतने संगीन आरोप थे , तो उनपर नज़र क्यों नही रखी जा रही थी ?
क्या ये मामला सिर्फ 70 लाख का है ? न जाने ऐसे कितने 70 लाख बबलू मास्टर के खाते में गए हो ।
क्या मुख्य आरोपी बबलू मास्टर है ? या ये सिर्फ एक छोटा सिपाही है ? बड़े - बड़े लोग इसमें शामिल है इससे इनकार भी तो नहीं किया जा सकता है ।
शुभनारायण दत्त अपने स्तर पर अपने ऑफिस के लोगों की जाँच कर रहे थे । तो उस जाँच की रिपोर्ट कहाँ है ?
बीजेपी ने अभी तक शाहीन परवीन को उसके अधिकारों से क्यों नहीं हटाया है ? क्या शाहीन परवीन अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल नहीं करेगी अपने पति बबलू मास्टर को बचाने के लिए ?
बबलू मास्टर सीतामढ़ी पुलिस के नाक के नीचे से कोर्ट में जाकर आत्मसमर्पण कर देता है । और सीतामढ़ी पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगती है । क्या इसको सीतामढ़ी पुलिस की नाकामी माना जाए या किसी तरह के सांठ - गांठ माना जाए ?
गोली 31 मई को ही क्यों चली ? जबकि जून में तो उनका तबादला पटना होने वाला था ।।
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ऐसे बहुत से सवाल है , जिसके जवाब मिलने की उम्मीद फिलहाल तो कम है । लेकिन एक बात तो स्पष्ट है , बिहार में अपराध का ग्राफ दुबारा ऊपर की ओर जा रहा है । अपराधियों के मन से कानून का डर खत्म होता दिख रहा है ।
अगर बिहार में ऐसे ही दिन दहाड़े हत्या होती रही तो वह दिन दूर नहीं जब बिहार दुबारा जंगलराज जैसी स्थिति देखने को मिल जाए । जब इतने बड़े अधिकारी ही सुरक्षित नही है तो आम आदमी की सुरक्षा के बारे में सोचना भी एक हास्यास्पद लगता है ।
न खाएंगे , और न खाने देंगे कि नीति पर काम करने का क्या फायदा ? यह केवल सीतामढ़ी जिला कल्याण विभाग की स्थिति नहीं है । पूरे बिहार में भ्रष्टाचार की जड़े मजबूत हो रही है । उसी में से कोई शुभनारायण दत्त जैसा ईमानदार अफसर आता है । और उसे “ईमानदारी का इनाम ....” मिलता है ।
 
( अभिलाष दत्त )

Thursday, July 26, 2018

भारतीय जीवन दर्शन और पुरुषार्थ




इस ब्रह्मांड में केवल धरती एकमात्र ऐसा ग्रह है , जिसपर जीवन संभव है परमात्मा की अनुपम उपहार है ये जीवन धरती पर जीवन सुचारू ढंग से कार्य करे , इसके लिए परमात्मा ने  विविन्न प्रकार के जीव जंतुओं का निर्माण किया   
भूख , भय , निद्रा और प्रजनन यह चार तत्व धरती के सभी जीव - जंतुओं में एक सामान रूप से मौजूद हैं परंतु , मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो बाकी जीव - जंतुओं से अलग है बाकी जीवों की तुलना में वह श्रेष्ठ है  ज्ञान अर्जित करना और उसे संग्रह करना मनुष्य को दूसरे जीवों से अलग करता है मनुष्य में सोचने की शक्ति विद्यामान है मनुष्य विचारों का संग्रह करता है  
इसलिए भारतीय जीवन दर्शन में जीवों की दो श्रेणी बनाई गई है :-

1. भोग श्रेणी

इस श्रेणी में आनेवाले जीवों को सिर्फ भोग से मतलब रहता है अर्थात , इन्हें ज्ञान अर्जित करने से कोई मतलब नहीं होता है प्रजनन के लिए ये अलग - अलग साथियों के खोज में रहते है खुले में मल मूत्र का त्याग करते हैं जहाँ खाने की वस्तु दिखती है उसपर यह टूट पड़ते है  
आम बोलचाल की भाषा में इन्हेंजानवरशब्द से संम्बोधित किया जाता है जानवर अपने विचारों का संग्रह नहीं करता है

2. मोक्ष श्रेणी

इस श्रेणी में वह जीव आते है , जो इस लोक में ज्ञान अर्जित कर के अपना परलोक को भी सुधारने का प्रयास करते हैं ऐसे जीवों को मनुष्य कहा जाता है मनुष्य अपने विचारों का आदान - प्रदान के साथ इसे संग्रह भी करता है ज्ञान अर्जित कर के उसे आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित भी करता है समाज में रह कर जीवन - यापन करता है  
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 भारतीय दर्शन और सनातन परंपरा के अनुसार मनुष्य के जीवन में नैतिकता होना बहुत जरूरी है बिना नैतिकता के मनुष्य का जीवन जानवर समान है नैतिकता से ही मनुष्य यह फैसला कर पाता है , कि यह चीज़ उचित है और यह अनुचित जो मनुष्य अपने जीवन मे नैतिकता को पूर्ण रूप से ढाल ले उसका जीवन सर्वश्रेष्ठ हो जाता है नैतिकता का संबंध ज्ञान से है
नैतिकता शब्द का निर्माण नीति से हुई है नीति जिसमें नी मूल धातु है , और इत्ती प्रत्यय है नी का अर्थ होता है , “लक्ष्य तक पंहुचना” , और इत्ती का अर्थ होता हैलक्ष्य तक पंहुचाने का सूत्र 
भारतीय जीवन दर्शन में लक्ष्य केवल वही मनुष्य पा सकता है जिसमें पुरुषार्थ की भावना निहित हो   भारतीय जीवन दर्शन में लक्ष्य प्रप्ति के लिए पुरुषार्थ के चार मूल तत्व बताएं गए हैं
1. धर्म ,
2. अर्थ ,
3. काम,
4. मोक्ष 

1. धर्म

यतो अभ्युदय नि: श्रेयस सिद्धि सह धर्म:”

अर्थात जिससे हमारे जीवन का समग्र भौतिक उत्कर्ष हो उसको धर्म कहते हैं
यह उस व्यवहार को इंगित करती है जिससे संसार में प्रतिष्ठा प्राप्त हो

मनुने मानव धर्म के दस लक्षण बताते हुए कहा है :-
    धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम्
(धृति (धैर्य), क्षमा (दूसरों के द्वारा किये गये अपराध को माफ कर देना, क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), अस्तेय (चोरी करना), शौच (अन्तरंग और बाह्य शुचिता), इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश मे रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा), सत्य (मन वचन कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध (क्रोध करना) ; ये दस मानव धर्म के लक्षण हैं।)
जो अपने अनुकूल हो वैसा व्यवहार दूसरे के साथ नहीं करना चाहिये - यह धर्म की कसौटी है।

श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां समाचरेत्
 अर्थात , धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो और सुनकर उस पर चलो ! अपने को जो अच्छा लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये।

2. अर्थ 

मनुष्याणां वृत्तिः अर्थः (कौटिल्यीय अर्थशास्त्र)

अर्थात जो भी विचार और क्रियाएं भौतिक जीवन से संबंधित है उन्हें 'अर्थ' की संज्ञा दी गयी है।
भारतीय दर्शन में अर्थ का तात्पर्य केवल धन संचयन से नहीं है इसके लिए भारतिय दर्शन में व्यापक दृष्टि के तौर पर देखती है हम जो प्रकृति से प्राप्त करते हैं उसका उपयोग हम अपने लिए और अपने समाज के लिए करेंगे , साथ ही भविष्य के लिए भी सोचेंगे जब तक केवल अपने बारे में सोचेंगे तब तक प्रकृति का दोहन होते रहेगा भविष्य और समाज के बारे में जब हम सोचना शुरू कर देंगे तब जा कर हम प्रकृति को सुरक्षित करने के लिए आगे सकेंगे
धर्म के बाद दूसरा स्थान अर्थ का है। अर्थ के बिना, धन के बिना संसार का कार्य चल ही नहीं सकता। जीवन की प्रगति का आधार ही धन है। उद्योग-धंधे, व्यापार, कृषि आदि सभी कार्यो के निमित्त धन की आवश्यकता होती है। यही नहीं, धार्मिक कार्यो, प्रचार, अनुष्ठान आदि सभी धन के बल पर ही चलते हैं। अर्थोपार्जन मनुष्य का पवित्र कर्त्तव्य है। इसी से वह प्रकृति की विपुल संपदा का अपने और सारे समाज के लिए प्रयोग भी कर सकता है और उसे संवर्द्धित संपुष्ट भी। पर इसके लिए धर्माचरण का ठोस आधार आवश्यक है। धर्म से विमुख होकर अर्थोपार्जन में संलग्न मनुष्य एक ओर तो प्राकृतिक सम्पदा का विवेकहीन दोहन करके संसार के पर्यावरण संतुलत को नष्ट करता है और दूसरी ओर अपने क्षणिक लाभ से दिग्भ्रमित होकर अपने समाज के लिए अनेकानेक रोगों कष्टों को जन्म देता है। धर्म ने ही हमें यह मार्ग सुझाया है कि प्रकृति से, समाज से हमने जितना लिया है, अर्थोपार्जन करते हुए उससे अधिक वापस करने को सदैव प्रयासरत रहें
उदहारण के तौर पर , हम गौ माता से दूध लेते हैं बदले में उन्हें खाना देते हैं , देख भाल करते हैं उनका आशीर्वाद भी लेते हैं जितना ले रहे है उससे अधिक लौटाने का गुण हमारे अंदर होना चाहिए

3. काम

काम सुनते ही बहुतों के दिमाग संभोग का विचार उत्पन्न हो जाता है ऐसा सोचना अल्पज्ञानी होने का लक्षण हैं भारतीय दर्शन में काम के बारे में कहा गया है , “जो सुख है वही काम है सुख केवल संभोग से प्राप्त नहीं होता है सुख पाने के लिए अनेक तत्व हैं , जिसमे संभोग सिर्फ एक तत्व से अधिक कुछ नहीं है

महर्षि वात्स्यायन के अनुसार,

श्रोत्रत्ववच्क्षुर्जिह्वा ध्राणानामात्म संयुक्ते नमन साधिष्ठितानां स्वेषु स्वेषु विषयेष्जानुकूल्यतः प्रवृतिः कामः।
स्पर्शविशेषविषयात्तवस्यामिमानिकसुखानुविद्धा। फलवत्यर्थप्रलीतिःप्राधान्यात्कामःतंकामसूत्रान्नगरिकजनसमवियच्च प्रतिपद्येत।
एषां समवाये पूर्वः पूर्वो मरियान् अर्थस्व राज्ञः। तन्मूलवाल्लोकयात्रायाः। वेश्यायाश्वेतित्रिवर्गप्रतिपत्तिः।
अर्थात् काम ज्ञान के माध्यमों का उल्लेख करते हुये कहा गया है कि आत्मा से संयुक्त मन से अधिष्ठित तत्व, चक्षु, जिव्हा, तथा ध्राण तथा इन्द्रियों के साथ अपने अपने विषय - शब्द, स्पर्श, रूप, रस, तथा गंध में अनुकूल रूप से प्रवृत्तिकामहै। इसके अलावा स्पर्श से प्राप्त
अभिमानिक सुख के साथ अनुबद्ध फलव्रत अर्थ प्रीतति काम कहलाता है। इसके अलावा अर्थ, धर्म तथा काम की तुलनात्मक श्रेष्ठता का प्रतिपादन करते हुये कहा गया है कि त्रिवर्ग समुदाय में पर से पूर्व श्रेष्ठ है। काम से श्रेष्ठ अर्थ है तथा अर्थ से श्रेष्ठ धर्म है। परन्तु व्यक्ति व्यक्ति के अनुसार यह अलग-अलग होता है। माध्वाचार्य के अनुसार विषयभेद के अनुसार काम दो प्रकार का होता है। इनमें से प्रथम को सामान्य काम कहते हैं। जब आत्मा की शाब्दिक विषयों के भोगने की इच्छा होती है तो उस समय आत्मा का प्रयत्न गुण उत्पन्न होता है। अर्थात आत्मा सर्वप्रथम मन से संयुक्त होती है तथा मन विषयों से। स्रोत, त्वच, चक्षु, जिव्हा तथा ध्राण इन्द्रिय की क्रमशः स्पर्श, रूप, रस, गन्ध में प्रवृत्त होते हैं। काम की इस प्रकृति में न्याय वैशेषिक मत अधिक झलकता है। इसके अनुसार शब्दादि विषयणी बुद्धि ही विषयों के भोग के स्वभाव वाली बुद्धि ही विषयों के भोग वाली स्वभाव वाली होने के कारण उपचार से कम कही जाती है। अर्थात् आत्मा बुद्धि के द्वारा विषयों को भोगता हुआ सुख को अनुभव करता है। जो सुख है, सामान्य रूप से वही काम है।

4. मोक्ष 

मोक्ष को परम पुरुषार्थ माना गया है इसमें पूर्वज , पितरों और परमात्मा को याद करते है
 भारतीय दर्शन में  नश्वरता को दुःख का कारण माना गया है। संसार आवागमन, जन्म-मरण और नश्वरता का केंद्र हैं। इस अविद्याकृत प्रपंच से मुक्ति पाना ही मोक्ष है
संसार रूपी चक्र को पार कर के आत्मा का मिलन परमात्मा से होता है  , और उसका अभिन्न अंग बन जाता है इसी प्रक्रिया को मोक्ष कहा गया है दोनों के बीच का सारा दूरी खत्म हो जाती है
भारतीय परंपरा में इसका सीधा सीधा मतलब है मुक्ति , यानी संसार के आवागमन से दूर हो जाना


( अभिलाष दत्त)