Thursday, July 26, 2018

छँटते हुए चावल ( पुस्तक समीक्षा )

जब खुद के जीवन के अनुभव कड़वे होते हैं । तब कलम में ताकत खुद-ब-खुद आ जाती है । इस कथन को पूर्ण रूप से चरित्रार्थ , नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’ जी की किताब “छँटते हुए चावल” करती दिखाई देती है ।
स्त्री विमर्श पर उनके द्वारा लिखी गयी यह किताब , आज के मध्यम वर्गीय एवं निम्वर्गीय औरतों का परिचय करवाती नज़र आती है ।
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किताब की पहली कहानी “छँटते हुए चावल” में उन्होंने चॉल में रहने वाले लोगों , खासकर औरतों के जीवन को अच्छे ढँग से उतारा है । कहानी के माध्यम से उन्होंने यह बताया है की औरतों के समूह में एक नेता ( नेतृत्व ) होती है । पूरे चॉल की महिला उसके आगे पीछे लगी रहती है । कहानी के अंत में सरिता के द्वारा कहे गए संवाद में “पति के जाने के बाद हम औरतों के पास कोई काम नहीं होता है । तो चावल छाँटते वक़्त किसी की बुराई कर लेते हैं” । इस पंक्ति में कहानी का सार नज़र आ जाता है । सरिता औरतों की सच्चाई भी बता देती है , और साथ में यह भी बता देती हैं कि इस काम में उसे और बाकी औरतों को रस की प्राप्ति होती है ।
किताब की बात करूँ , तो इस कहानी संग्रह में चौदह कहानी आपको पढ़ने को मिलेगी । अधिकतर कहानी सुखद अंत का एहसास कराते ख़त्म होती है । कुछ ही कहानी दुःखद अंत के साथ ख़त्म हुई है ।
“बिछावन” कहानी का अंत आपको झकझोर कर के रख देगी । लेकिन फिर कहानी “काला अध्याय” में लेखिका दोहरावपन का शिकार होती दिखती है । ऐसी कहानी बहुत लेख़क पहले भी लिख चुके हैं ।
पर जैसे ही आप कहानी “आस भरा इंतज़ार” की ओर बढिएगा , आपको एक दफा , यकीन मानिए “प्रेमचंद" जी की याद जरूर आ जायेगी । लीला के मन में पूरी और रोटी का जो अंतर्द्वंद्व चल रहा था , वह सही मायने में अमीरी गरीबी के खाई को दिखाती है ।
क्षेत्रीयता का प्रभाव भी किताब में नज़र आता है । “माफ करना” कहानी में छठ पूजा के दृश्य बड़े मनोरम तरीके से लिखे गए हैं । लोकभाषा के कुछ शब्दों के इस्तेमाल से कहानी में जान और बढ़ गयी है । पाठक इस चीज़ से और अच्छे तरीके से जुड़ पाएंगे ।
कहानियाँ पढ़ते वक्त आपको यह एहसास होगा की यह सभी पात्र हमारे आस - पास ही हैं । पर हमें नज़र क्यों नहीं आते ? क्योंकि हमारे पास एक लेखक वाली नज़र नहीं होती ।
किताब को मैं 5 में से 4 स्टार दूँगा । 
1 स्टार इसलिए काटूँगा की आज हर दूसरा लेख़क स्त्री विमर्श के मुद्दे पर लिख रहा है । तो अब इन मुद्दों पर लिखी कहानियाँ पहले से पढ़ी हुई लगने लगती है ।
एक विनती और कहानी पढ़ने से पहले , इस किताब में लिखी “आत्म संवाद” अवश्य पढ़िए । किताब से और अच्छे तरीके से आप जुड़ सकेंगे ।

धन्यवाद ,

आपका 
अभिलाष दत्ता

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