Thursday, July 26, 2018

पटना में प्यार

                       पटना में प्यार
सुन मेरे हमसफ़र
क्या तुझे इतनी सी भी खबरसुन मेरे हमसफ़र
क्या तुझे इतनी सी भी खबर
की तेरी साँसे चलती जिधर
रहूँगा बस वही उम्र भर
रहूँगा बस वही उम्र भर हायजितनी हसीं ये मुलाकातें हैं
उनसे भी प्यारी तेरी बातें हैं
बातों में तेरी जो खो जाते हैं
आऊँ ना होश में मैं कभी
बाहों में है तेरी ज़िन्दगी हाय
सुन मेरे हमसफ़र”.......
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देखों आज मौसम कितना खुशनुमा है । ऑफीस के लिए निकल रहा हूँ । हल्की बूंदाबांदी भी हो रही है । मोबाइल पर तुम्हारी मनपसन्द गीत चल रही है । इयरफोन को अपने कान लगा कर इस गीत को महसूस कर सकूँ । मुझे पता है तुम्हें यह बिल्कुल पसंद नही है कि बाइक चलाते वक़्त इयरफोन पर गाने सुनु । पर क्या करूँ ... तुम तो साथ में हो नहीं , तुम्हारी याद तो साथ में है । इयरफोन पूरी तरह एक दूसरे में उलझा हुआ है । ठीक उसी तरह हम दोनों एक दूसरे में उलझ कर रह गए है । इयरफोन को बिना सुलझाए उसकी उपयोगिता न के बराबर है । वैसे हम भी एक दूसरे में उलझे हुए अलग - अलग राहों पर चल चुके हैं । परेशान हूँ , कहीं गीत के खत्म होने से पहले इयरफोन के तारों को न सुलझा पाया तो ?
इयरफोन तो सुलझ गयी है । इस गाने को लूप मोड पर दुबारा से बजा दिया । देखो आज ये गांधी मैदान वाला रास्ता कितना खाली है । पटना की सड़के खाली देखना जन्नत देखने के बराबर जैसा है । ओह , मुझे तो अभी याद आया आज कथित तौर पर भारत बंद है । स्वर्णों ने आज भारत बंद कर दिया है । चलो इसी बहाने सड़के खाली है । प्रेस लिखी हुई बाइक को जल्दी कोई रोकता नहीं है । मोबाइल पर अब यही गीत एक बार फिर शुरू हो चुकी है । याद तो तुम्हें होगा ही अंतिम बार तुम मेरे बाइक पर कब बैठी थी । 1.5 साल पहले , उसी दिन तुमने यह गाना मुझे पहली बार सुनाया था । पूरे चेहरे को तुमने अपने दुपट्टे से ढक लिया था । तुम्हारे मन में डर था कि कोई जान पहचान का देख न ले । डर तो मुझे भी था इसलिए पूरे रास्ते भर मैंने अपना हेलमेट नहीं उतारा था । पटना में प्यार करना बहुत डरावने सपने जैसा होता है । हर पल ऐसे लगते रहता है कि कोई देख रहा है । इस डर की वजह से पटना के सभी रास्ते हम उस दौर में नाप चुके थे । जब आप प्यार में होते है तो हमेशा नए रास्ते या नयी जगह की तलाश में होते है , क्योंकि एक जगह पर दो तीन दिन तक मिलना वहाँ के लोगों की नज़रों में खटकने लगता है । फिर पटना के नियम को सार्थक मान कर हम दोनों भी पटना के चिड़ियाघर गए थे । पटना के सभी आशिक़ अपने प्यार में दौर में इस जगह जरूर आता है । यह प्यार करने वालों के लिए मंदिर है । पर इस मंदिर में भी पापी लोग आते है । वह चार लड़के मुझे आज भी याद है जो कैसे ख़राब नज़रो से हमे देख रहे थे । वह तो बेशर्म थे , हमें ही अपना मंदिर छोड़ कर जाना पड़ा । पटना में हर नज़रे आपका पीछा करते रहती हैं ।
तुमने कहा था कि तुम्हें वरुण धवन बहुत पसंद है । मुझे भी तुममें आलिया भट्ट नज़र आने लगी थी । फ़िल्म का नायक तो अपनी दुल्हनिया तो ले आता है । पर क्या पटना का हीरो अपनी हीरोइन को अपना बना पाता ?
शायद नहीं ,, तुम्हें भविष्य की चिंता होने लगी थी । तुम्हें अपने घर में बेटे होने की जिम्मेदारी भी निभानी थी । और , मुझे तो लेख़क बनने का भूत सवार हो गया था । यह नौकरी पाने की होड़ में हम दोनों अब दूर हो रहे थे । पर मैं तुमसे दूर नही रह सकता था । इसलिए मैंने भी कैरियर प्लानर में तुम्हारे बैच में एडमिशन ले लिया । 6 महीना के अंदर ही मुझे पता लग गया कि यह सरकारी नौकरी का नौटँकी हमसे नहीं हो पायेगा । पर तुम तो हर टेस्ट में टॉप हुए जा रही थी । तुम बैंक पी.ओ का सपना देख रही थी , और मैं बेस्टसेलर बनने का । मुझे भी पता था हम दोनों अलग - अलग जाति के थे । चलो एक पल के लिए मान लेते है , की मैं तुम्हारे घर आ कर तुम्हारे पापा से बात करूँ । नौकरी के नाम पर मैं क्या कहूँगा कि मैं एक लेख़क हूँ और छोटा मोटा पत्रकार । यहीं से हमारे रास्ते अलग हो चुके थे । हम दोनों में ईगो की मात्रा भरपूर थी । जब तुम्हारा बैंक पी.ओ का एग्जाम क्लियर हुआ और तुम्हारी नौकरी भोपाल में लगी तो तुमनें मुझे बताना भी जरूरी नही समझा । तुम्हारी शर्त थी कि मुझे भी सरकारी नौकरी करनी होगी तो वह अपने घर वालों को शादी के लिए मना लेगी ।
लेकिन तुम्हें पता तो था , कि मुझसे सरकारी नौकरी की तैयारी नहीं हो सकती थी ।
.....
खैर छोड़ो , मेरा ऑफिस आ चुका है । कभी दुबारा मिलो एक बार फिर बाइक पर कहीं घूमने निकलते हैं । NIT , महेंद्रू , खाजेकलां कहीं भी ।
और यह गीत यह तो बजती ही रहेगी ।।
“सुन मेरे हमसफर , क्या तुझे इतनी सी है ख़बर”...



अभिलाष दत्ता

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