Thursday, July 26, 2018

समीक्षा की समीक्षा




                                                  समीक्षा की समीक्षा



साहित्य और फिल्मों की दुनिया में समीक्षा का अपना अलग महत्व है । समीक्षा लिखना एक कला है । अच्छे से अच्छे लेख़क को भी सही समीक्षा लिखने में दिक्कत आती है । निरंतर अभ्यास से इस विद्या के तकनीक को सीखा जा सकता है । 


1. समीक्षा औऱ प्रतिक्रिया में क्या अंतर होता है ?



उत्तर - बिना किसी पूर्वाग्रह के औऱ बिना किसी के प्रभाव में आये चीज़ को जब हम लिखतें हैं तो वह समीक्षा कहलाती है । 

मान लीजिए हमें फलाना लेख़क या फलाना फ़िल्मकार   पसन्द है । हमने उसकी कोई रचना पढ़ी या कोई फ़िल्म देखी , तो  वह हमें कैसी लगी  ? यह विचार बताना “प्रतिक्रिया” कहलाती है । प्रतिक्रिया में हम तुरंत बता सकते हैं हमें यह पसन्द आयी , या हमें वह नापसंद आयी ।



2. समीक्षा लिखने की मूलभूत बातें क्या होती हैं ?



उत्तर - पहले किताब की समीक्षा की बात करते हैं । जब कभी कोई किताब समीक्षा की दृष्टिकोण से हमारे पास आती है । तो कुछ बातों को ध्यान रखना आवश्यक होता है । 

● आप जिस विचाधारा से प्रभावित है , उस सोच से बाहर आ कर समीक्षा लिखनी चाहिए । अगर किसी खास सोच के साथ किसी किताब की समीक्षा लिखतें है तो गलत करते हैं । अगर वह किताब आपके विचारधारा पर हो तब आप उस किताब की वाहवाही लिख के भर देंगे । कहीं वह किताब आपके विचारों से अलग होकर लिखी गयी है , तब आप उसकी बुराई लिख देंगे । इस चीज़ से बचना चाहिए , यह एक अच्छे समीक्षक नहीं बनाती है ।
● समीक्षा लिखना बिल्कुल एक अलग विद्या है । किताब की समीक्षा लिखने वक़्त कहानी के भाव , लेख़क की मनोदशा भाषा , वाक्य विन्यास , पात्रों के स्थिति , व्याकरण पर ध्यान इत्यादि । इन तमाम छोटी छोटी बातों पर ध्यान देने की जरूरत होती है ।
● किताब की समीक्षा लिखने से पहले , हमें उस किताब को पढ़ना आवश्यक होता है । किताब पढ़ने वक़्त हमारा नज़रिया विशुद्ध पाठक वाली होनी चाहिए । पर साथ में यह भी ध्यान में रहे कि हमें इस किताब की समीक्षा लिखनी है , तो पढ़ते वक्त हमारे हाथ में पेंसिल या पेन होनी चाहिए । ताकि जो पंक्ति या वाक्य हमें अच्छा या बुरा लगा उसे रेखांकित कर ले । इससे समीक्षा लिखने में आसानी होती है । उन सभी रेखांकित बातों को हम समीक्षा में डालेंगे तो समीक्षा की खूबसूरती और बढ़ जाएगी । पर ध्यान रहे , सभी रेखांकित बातों का जिक्र अगर समीक्षा में करते हैं , तो आपकी समीक्षा लंबी और उबाऊ बन जाएगी ।



ठीक इसी तरह फ़िल्मो की समीक्षा लिखते वक्त हमें फ़िल्म के अभिनेताओं के बारे में जरूरी ज्ञान होनी चाहिए , फ़िल्म के निर्देशक के बारे में यह पता होना चाहिए वह किस जोन की फिल्में अधिक बनाते हैं । फ़िल्म किस काल की बनी हुई है । अभिनय का स्तर कैसा है । फ़िल्म की निर्देशन सही से हुआ है या नहीं । फ़िल्म जिस कालखंड की बनी हुई है , उसके पहनावा , भाषा को भी देखना होता है । समाज के लिए उसमें क्या है , यह भी याद रखने का विषय है ।

फिल्मों की समीक्षा लिखने वक़्त हमें इन सभी बातों का ध्यान रखना चाहिए । साथ मे कुछ दृश्यों को भी समीक्षा में लिखनी चाहिए । ताकि समीक्षा पढ़ते वक्त पाठक उस फ़िल्म से मानसिक तौर पर जुड़ सके ।



3. फ़िल्म समीक्षा औऱ किताब समीक्षा में क्या अंतर होता है ?



उत्तर - फ़िल्म औऱ किताब की समीक्षा लिखना दो अलग अलग विद्या होती है । फिल्में कई तरह की बनती है और किताबें भी कई तरह की होती है । कोई भी फ़िल्म 3 घण्टे से अधिक की नहीं होती है । इसलिए इसकी समीक्षा लिखनी आसान है । ऐसे बहुत से समीक्षक है जो फ़िल्म देखकर आतें है , औऱ तुरंत समीक्षा लिखने बैठ जाते है । लेकिन इसमें गलतियाँ होने की संभावना बढ़ जाती है । क्योंकि फ़िल्म के बहुत से दृश्य तो फ़िल्म देखते समय ही हम भूल जाते है । इसलिए कोई भी फ़िल्म की समीक्षा लिखने के लिए हमें वह फ़िल्म कम से कम दो बार जरूर देखनी चाहिए । पहली बार एक आम दर्शक की नज़र से , बिना किसी पूर्वाग्रह से ग्रषित हुए । दूसरी बार समीक्षक की नज़र से ।

किताब की समीक्षा लिखने से पहले हमें यह जान लेना चाहिये कि किताब या साहित्य में अनेक रूप होते है । उपन्यास , कहानी संग्रह , कविता संग्रह , शायरी , नाटक इत्यादि । अर्थात जिस विद्या की साहित्य हम पढ़ रहे हैं , हमारी समीक्षा भी उसी विद्या को ध्यान में रखते हुए होनी चाहिए । उपन्यास की समीक्षा लिखनी थोड़ी कठीन होती है , क्योंकि उपन्यास में उपकथा भरी होती है । कहानी संग्रह में मान लीजिए 10 कहानी है , तो दस बार बैठने पर वह कहानी संग्रह समाप्त हो जाएगी । और पेंसिल से रेखांकित कर लेने से हमे यह फायदा होता है कि समीक्षा लिखते वक्त रेखांकित किये गए वाक्य को देख लेने भर से हमें पूरी कहानी दुबारा याद आ जाती हैं । 



4. समीक्षा से जुड़ी कुछ और जरूरी तत्व :-





उत्तर - समीक्षा लेखन , साहित्य की एक विद्या होती है । इसका जन्म साहित्य से ही हुआ है । इसलिए समीक्षा लिखने के लिए , साहित्य के बाकी शाखाओं का भी ज्ञान होना आवश्यक है । समीक्षा लिखने वक़्त समीक्षक की नज़र से न देखकर , बल्कि एक पाठक और दर्शक की नज़र से देखनी - पढ़नी चाहिए । इससे यह फायदा होता है हम उस रचना की अच्छी - बुरी दोनों चीज़ को देख पाते हैं । लेकिन जब हम केवल समीक्षक की नज़र से किसी रचना को पढ़ेंगे या देखेंगे तो हमें केवल उस रचना में गलतियाँ औऱ अशुद्धियाँ ही दिखाई देंगी ।




 अभिलाष दत्त

1 comment:

  1. समीक्षा के बारे में शानदार लेख है।

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